10/17/16

दिल है, महफ़िलमें भी तनहा हो सकता है

दिल है, महफ़िलमें भी तनहा हो सकता है 
जो पाया था, वो ही अक्सर खो सकता है 

जाँ से जाते जाते हमने ये समझा 
बारिश में पत्थर को देखो, रो सकता है 

जज़्बातों के ढ़लते मौसम जाते रहें 
यादें तो फिर हर कोई पिरो सकता है 

अपनी ख़ताएँ गिनने वाले कम न हुए 
हम जो कर गुजरे वो किससे हो सकता है!

दर्द को सुननेवाले अबके कहाँ मिले 
ख़ुशियों का बाज़ार लगा है, वो सस्ता है 

तुमसे उम्मीदें तो थीं पर फिर सोचा 
उम्मीदों से हारे कच्चा वो रिश्ता है 

शहर था खाली, दोस्त नही थे, पर खुश थे 
राह उजड़ने की देखे, दिल वो कब बसता है 

हमसे पूछो मत हाल-ए-दिल अपनी कहो
प्यारा लगता है वो बच्चा जो हँसता है 

काश के हम भी होते सूखे पात की तरह 
कागज़ के पन्नो में सिमटा सो सकता है

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